क्लाइमेट चेंज को ग्लोबल वार्मिंग कहना है या फिर ग्लोबल कूलिंग, वैज्ञानिक भले ही यह तय न कर पाए हों लेकिन लोगों की आंखों का पानी सूख रहा है, इस तथ्य पर सहमत हुए बिना नही रहा जा सकता। हाल की कुछ घटनाएं इस समस्या के वैश्विक स्वरूप को तर्कपूर्ण ढंग से सामने लाती हैं। जैसे कि, गोदामों में सड़ रहे खाद्यान्न को मुफ्त बांटने की बात पर जब केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप न करने की सीख दी गई तो भले ही केंद्र सरकार के नुमाइंदों को अहसास न हुआ हो, लेकिन भूख और गरीबी से त्रस्त जनता को पता चल गया कि आंखों का पानी सूख रहा है। हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा जब खुद की तुलना हाईस्कूल के छात्र से की गई, तब सबके साथ खुद सत्तासीनों को भी इस बात का अहसास हो गया कि यह समस्या वास्तव में राष्ट्रीय स्तर की है, और खुद प्रधानमंत्री भी इस से अछूते नहीं हैं।
अरूंधती राय ने जब भारत में बैठकर पाकिस्तान के सुर में कश्मीर की आजादी का सुर मिलाया तब शहीदों के परिजनों के साथ हर एक हिंदुस्तानी को महसूस हुआ कि वास्तव में आंखों के पानी के सूखने की यह समस्या देश में नदियों के सूखने से कहीं ज्यादा बड़ी है। इसी तरह आजादी बचाओ आंदोलन के प्रखर प्रवक्ता और स्वदेशी विचार से ओत-प्रोत राजीव दीक्षित के निधन के बाद भी जब राजनीति में जाने को अधीर बाबा रामदेव की भारत स्वाभिमान यात्रा स्थगित नही हुई, तब समझने वाले समझ गए कि यह समस्या महज राजनीतिज्ञों तक सीमित नही है, बल्कि योगी-जोगी भी इसके शिकार हो रहे हैं।
ऐसा उस समय भी लगा, जब क्रिकेटर और सांसद अजहरूद्दीन की बैडमिंटन खिलाड़ी ज्वाला के साथ अफेयर की खबरें संगीता बिजलानी के गमगीन चेहरे के साथ अखबारों की सुर्खियां बनीं। अजहर की पहली पत्नी नौरीन को याद करते हुए लोगों ने इसी समस्या की गंध महसूस की। इससे पहले खुद से तकरीबन आठ साल बड़ी पत्नी अमृता सिंह को गुड बाय बोल करीना से नाता जोड़ने वाले अभिनेता सैफ अली खान को लेकर भी लोगों के मन में ऐसे विचार पनपे थे।
ऐसा नही कि जलवायु परिवर्तन का यह असर सिर्फ भारत में दिख रहा है। सुरक्षा परिषद में भारत के दावे की खिल्ली उड़ाने के विकीलीक्स खुलासे पर भी हर भारतीय को पता चल गया कि आंखों का पानी सूखने की यह समस्या वास्तव में ग्लोबल है और दुनिया का सबसे ताकतवर देश भी इसकी जद में है। पाकिस्तान द्वारा बाढ़ पीड़ितों के लिए भारत की मदद ठुकराए जाने पर भी लोगों ने ऐसा ही कुछ महसूस किया।
बहरहाल, घटनाएं कई हैं। गली-मुहल्ले से लेकर देश और दुनिया तक की, जो हमारे बीच संवेदनहीन लोगों की नंगी तस्वीर सामने रख देती हैं। एक जमाने में लोग ऐसी आंखों को जिनका पानी सूख जाता था, हेय दृष्टि से देखते थे और उस पर रिएक्ट करते थे लेकिन आज मनुष्य की फायदेवादी बुद्धि इस सबका न तो मौका देती है और ना ही समय। ऐसे में क्लाइमेट चेंज के बहाने हम इस सब पर भी गौर फरमा लें तो क्या बुरा है!