Tuesday, April 6, 2010

अरुंधती को गृहमंत्री बना दिया जाए तो कैसा रहेगा !

(Arudhati Roy with a gang of Naxalites in Dantewada, Chattisgarh) photo source- Outlook India

हाल ही में आउटलुक मैग्जीन में नक्सलियों के बारे में कवर स्टोरी पढ़कर अरुंधती राय की दिलेरी का कायल हुए बगैर ना रह सका। छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा के जंगलों में जिन नक्सलियों तक बीएसएफ, आईटीबीपी और सीआरपीएफ जैसे अर्द्धसैनिक बल या पुलिस के स्पेशल आॅपरेशन ग्रुप्स नहीं पहुंच पाए उन्हें इस खांटी वामपंथी ने खोज निकाला। यही नहीं अपनी आवभगत भी कराई। 'वाकिंग विद कामरेड' नाम के इस लेख को पढ़कर दिल सोचने को मजबूर हो गया कि अगर अरुंधती को हमारे देश का गृहमंत्री बना दिया जाए तो कैसा रहेगा। हर तरह के रोल निभाने वाली अरुंधती देश के आंतरिक और बाहरी संकटों से बखूबी निबट सकती हैं।           
           न जाने क्यों अरूंधती को देख सुनकर किसी कार्टून फिल्म का मुख्य पात्र याद आ जाता है जो तरह-तरह की भूमिकाओं में दर्षकों का मनोरंजन करता है। कभी प्रगतिषील लेखिका, कभी सामाजिक विचारक, कभी एक्टिविस्ट तो कभी कामरेड बनी अरुंधती की लगभग हर ज्वलंत मुद्दे में अड़ने वाली टांगों का मैं निजी तौर पर कायल हूं। जबकि सस्ती लोकप्रियता के लिए सिर्फ विरोध के लिए विरोध करने वाली उनकी नीति का भी मैं पूरी तरह से गलत नहीं मानता।
             बात अरूंधती के उसी लेख से शुरू करते हैं जिसमें वह जीदारी के साथ बताती हैं कि उन्हें दिल्ली स्थित उनके निवास में एक चिट मिली, जिसमें उन्हें बाकायदा कोडवर्ड और कुछ खास साजोसामान के साथ दंतेवाड़ा आने का न्यौता दिया गया। कई दिनों के मुष्किल सफर के बीच अरुंधती ने अपने कामरेड साथियों से कई चरणों में बातचीत की। इस दौरान जंगलों में महज एक पाॅलीथिन पर रात बिताकर उन्होंने यह जता दिया कि वह सुख-सुविधाओं की मोहताज नहीं हैं। ऐसे में गृहमंत्री के रूप में मुष्किल से मुष्किल स्थिति का सामना कर सकने की उनकी क्षमता का पता चलता है।
          वैसे अरुंधती को यूपीए सरकार में किसी अन्य मंत्रालय जैसे सामाजिक न्याय, स्वास्थ्य, ग्रामीण पुनर्वास या कारपोरेट मामलों का प्रभार भी दिया जा सकता है लेकिन अपने लेख में उन्होंने जिस तरह से मौजूदा गृहमंत्री पी. चिदंबरम को आॅपरेशन ग्रीन हंट के लिए पानी पी-पीकर कोसा है, उससे तो यही लगता है कि इन्हें गृहमंत्री की कुर्सी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। कथित गरीब नक्सली भाई-बहनों के लिए उनकी भावनाएं पढ.कर बाॅलीवुड का कोई निदेशक एक मार्मिक फिल्म बना सकता है, जिसके हिट होने की भी पूरी गारंटी है। वहीं सलवा जुडूम पर सवालिया निषान के बाद सरकार की भी भलाई इसी में है कि उन्हें बंद कर दे, नहीं तो क्या पता 'गुरूजी' की यह शिष्या कल को अपनी मांगों के समर्थन में असत्याग्रह शुरू कर दे।

अरुंधती राय का पूरा लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें-
http://www.outlookindia.com/article.aspx?264738

1 comment:

  1. bhai, home ministar enhe bhi bana dejeye, lekin desh ke liye kuch achha hoga eski ummid mujhe nahi hai. etna jaroor hai ki naksal samasya par dhayan nahi diya gaya to aane wale wakt me bhayaweh tashveer samne hogi....

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