Monday, April 26, 2010

जवानों को कैनन फोडर तो न बनाएं!

बीते दिनों छत्तीसगढ से आगरा आते हुए ट्रेन में कुछ सीआरपीएफ के जवानों से बातचीत हुई तो नक्सली हिंसा के खौफनाक सच से वाकिफ हुआ। लगा कि कारगिल के युद्ध से ज्यादा खतरनाक तो जंगल की लड़ाई है। कारगिल में उंची चोटियों पर बैठे दुश्मन के बारे में जानकारी तो थी लेकिन नक्सल प्रभावित जंगल में किस पेड़ से या पत्तों के झुरमुट से जहरीला तीर गर्दन मेें आ लगे, कोई तो नहीं जानता। कारगिल में कुछ पता हो या न हो लेकिन गोली की दिशा  जरूर पता थी लेकिन जंगल में तो उसका भी पता नहीं। जाने किस ओर से गोली आ धंसे, कोई नहीं जानता।
बातचीत का लव्वोलुआब यह कि जंगल की लड़ाई का कोई स्टैंडर्ड आॅपरेटिंग प्रोसीजर नहीं होता। नियम भी सख्त होते हैं। जंगल में संभावित दुश्मन पर पहला फायर जवान अपनी ओर से नहीं कर सकते। क्या पता गोली किसी बेकसूर को लग जाए। दुश्मन सिर्फ वही माना जाएगा, जिसके पास हथियार हों या जो हमला करे। 40-45 किमी की पैट्रोलिंग और फिर जंगल की कठिन परिस्थितियां। ऐसे में कोई चूक हो भी जाए तो मानवाधिकार संगठनों और मुकदमों का डर। चाहकर भी दुश्मन को आगे बढ़कर नहीं दबोच पाते। शायद पीछे रहकर खतरा उठाना ही उनकी नियति बन चुका है। यात्रा के दौरान एक जवान ने कहा था कि हमें ऐसी लड़ाई में झोंका ज्यादा जाता है, जिसमें शहादत की संभावनाएं ज्यादा होती हैं और जीतने की कम। यह वाकया ताड़मेटला की घटना से पहले का है। अब सोचता हूं कि सीआरपीएफ के जवान गलत नहीं थे। बिना समुचित प्रशिक्षण के जंगल की अबूझ परिस्थितियों में जवानों को झोंककर कहीं कैनन फोडर तो नहीं बनाया जा रहा। अगर ताड़मेटला की घटना का सच भी ऐसा ही भयावह है तो यह हमारी चैन की नंीद के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले सुरक्षाबलों के मनोबल को तोड़ने वाली नीति है, जो भविष्य में हमारे लिए अधिक दुखदायी साबित होगी।

2 comments:

  1. wastav me desh ka jawan bahut visham halaton me kaam kar rahe hain. sushil se baat hoti hai to desh ki rajnetaon ki kathni-karni ka pata chalta hai. voton ki ke liye rajneta kuch bhi kara sakte hain....

    -kapil mrt

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  2. Hanji,aap kahan peho or kahankiho,bheise anterto henahi tabhi fark partahe. Eak baat yaad ayei tap eak amir admi(Iceland) Mother Teresako madat karne ayei bharat mein,tab Mother Teresane inkar kardiya ye keheke ki hum apane deshkeliye tayarhe or kosisbi karenge jeise aapki deshmeinbi garibi to hoga inkeliye kareto bheise aur ashi hoga. Aur ye bhaatbi hein ki agar peisa or hoga to inka hinsap kitap karna partahe,isliye inki pass itna admi nahihe ki logonko dekhbal karneke elaba peisakobi dekbal kare..

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